एम. डब्लू. अंसारी 

साम्प्रदायिक ताक़तों और तत्व से आज भारत की साझी विरासत के लिए बहुत बड़ा खतरा हैं, भारत की गंगा जमनी तेहज़ीब को इन साम्प्रदायिक ताकतों से बचाने की ज़रूरत है। ये विचार मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एवं राज्य सभा सदस्य श्री दिग्विजय सिंह ने तर्जुमे वाली मस्जिद में ईद मिलन समारोह के मौके पर व्यक्त किये।

उन्होंने आगे कहा कि आज जब साम्प्रदायिक ताकतें उन स्वतंत्रता सेनानियों के इतिहास को मिटाने की पुरजोर कोशिश कर रही हैं, जिनकी संख्या सात लाख से भी अधिक है, डॉ. नसीर अहमद गुंतूर आंध्र प्रदेश की यह पुस्तक नई पीढ़ी के लिए मशाल है। ऐसे कई मुजाहिदीन हैं जो कभी मंज़रे आम पर नहीं आ सके या लाए नहीं गए, इतिहासकारों ने उन्हें अपने लेखों में जगह नहीं दी. हमें समय-समय पर उन सभी को याद करना चाहिए. आज सांप्रदायिक ताकतें कई मुजाहिदीनों के इतिहास को भूला रही हैं, उन्हें एनसीईआरटी की पाठ्यपुस्तकों से हटाया जा रहा है. जरूरी है कि समाज के ताने-बाने, आपस दारी, साझी गंगा जमनी विरासत को बचाया जाए। हर संभव कोशिश करना चाहिए भारत के सेकुलर समाज और संविधान को बचाने की जो हमें बाबा साहेब अंबेडकर ने बहुत मेहनत के बाद दिया है।

इस अवसर पर प्रसिद्ध दानिश्वर एवं लेखक डॉ. नसीर अहमद गुंतूर ने भी श्री दिगविजय सिंह को अपनी पुस्तक ‘‘ प्उउवतजंसे प् – प्प् ‘‘ भेंट की। जिस में 300 से ज्यादा स्वतंत्रता सेनानियों का जिक्र किया गया है, जिन्हें इतिहास के पन्नों से भुलाने की कोशिश की जा रही है।

मौजूदा हालात में सत्ता पक्ष हर जगह मुस्लिम स्वतंत्रता सेनानियों, मुस्लिम विरासत और जगहों के नाम बदल रहा है, यह सब एक खास वर्ग के प्रति तअस्सुब का नतीजा है, जिसकी क़ीमत हर भारतीय नागरिक को चुकानी पड़ रही है और आने वाली पीढ़ियों और देश के लिए हानिकारक है। आज साम्प्रदायिक ताकतों से एक होकर लड़ने की ज़रूरत है।

पूर्व मुख्यमंत्री ने सुझाव दिया कि ऐसे तमाम स्वतंत्रता सेनानियों को एक साथ जमा किया जाए जेसै अशफाकउल्ला खान, राम प्रसाद बिस्मल, बरकतउल्ला भोपाली, राजा महेंद्र प्रताप, डॉ. भीमराव अंबेडकर, हसरत मोहानी, अली हुसैन आसिम बिहारी, रानी लक्ष्मीबाई, तातिया टोपे और उनके सभी मुस्लिम सेनापति आदि, जो मध्य भारत और बुंदेलखंड क्षेत्र मे  1857 की तहरीके जंगे आज़ादी में एक साथ मिल कर, एक साथ कंधे से कंधा मिलाकर सब ने कुर्बानी दी और सभी मुजाहिदों ने स्वतंत्रता के लिए लड़ाई लड़ी। उनके संघर्ष और बलिदान का परिणाम है कि आज हम आज़ाद हैं और खुली हवा में सांस ले रहे है।

पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने विशेष रूप से 15 अगस्त और 26 जनवरी के साथ-साथ अज़ीम श्ख्सियात के जन्म और मृत्यु के अवसर पर ऐसे कार्यक्रम आयोजित करने का सुझाव दिया ताकि उनकी याद ताज़ा हो और आने वाली पीढ़ी उनके बारे में जान सके। उन्होने कहा कि मुजाहिदीने आजादी के संबंध में एक प्रदर्शनी आयोजित की जानी चाहिए जिसमें उनकी सभी सेवाओं, बलिदानों और तस्वीरों और जीवनियों को प्रदर्शित किया जाए ताकि युवा पीढ़ी और आने वाली पीढ़ी उनके बारे में जान सके।

इस तक़रीब में विशेष रूप से आशीष सिंह कलेक्टर भोपाल, जमील खान एसडीएम भोपाल, राम स्नेही मिश्रा एडिशनल एसपी, छत्तीसगढ़ के रिटायर्ड डीजीपी एम. डब्ल्यू अंसारी, मौलाना मुफ्ती मोहम्मद अहमद खान अध्यक्ष जमीयत उलेमा एमपी, मौलाना मोहम्मद इस्हाक़ क़ासमी महासचिव जमीयत उलेमा मध्य प्रदेश, हाजी अब्दुल अजीज़ खान, हाजी मजीद सालार, साहबज़ादा अब्दुल रशीद और शहर के कई प्रतिष्ठित, बौद्धिक और सम्मानित व्यक्तित्व उपस्थित थे।

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