कृतिदेव यहां उर्दू है जिस का नाम हमीं जानते हैं ’दाग’
सारे जहां में धूम हमारी जु़बाँ की है
बुलबुल हिंद, नवाब मिर्ज़ा दाग एक महान शयर हैं। जिन्होंने उर्दू गज़ल में वो प्रेम गीत गाए जो उर्दू गज़ल की दुनिया के लिए नए थे। दाग देहलवी ने उर्दू गज़ल को एक समृद्ध स्वर दिया और साथ ही इसे भारी फारसी रचनाओं से बाहर निकाला और शुद्ध उर्दू में शयरी लिखी। नया तरीक़ा पूरे भारत में इतना लोकप्रिय हुआ कि हज़ारों लोगो ने उसे कुबुल किया और उनके शर्गिद बन गए। भाषा को उसके वर्तमान स्वरूप में लाने का श्रेय भी दाग को ही जाता है। दाग एक ऐसे शयर और कलाकार हैं, जिन्हें उनके विचार और कला, कविता और साहित्य की ऐतिहासिक सेवाओं के लिए कभी नहीं भुलाया जा सकेगा।
उनकी सेवा की सराहना की जानी चाहिए कि उन्होंने कठिन और सख़्त शब्दों को त्याग कर सरल शब्दों का प्रयोग किया। जिससे कलाम में खुबसुरती पैदा हुई। दाग दहलवी का फन उनकी श्ख्सियत की तसवीर है इस लिए उस में बड़ी जान है।
नही खेल ऐ दाग यारों से कह दो
कि आती है उर्दु ज़बान आते आते
दाग देहलवी को निज़ामे दक्कन से शिक्षा प्राप्त करने का सौभाग्य प्राप्त था। दबीर-उद-दौला, फसीह-उल-मुल्क, नवाब नाज़िम जंग बहादुर के खिताब मिले। दाग देहलवी के जितने शिष्य हुए किसी अन्य शयर को नहीं मिले। उनके शिष्य पूरे भारत में फैले हुए थे।
एक ऐसी शख्सियत जिसे किसी परिचय की आवश्यकता नहीं है, वह खुद दुनिया भर में जाने जाने वाले कई शयरों के उस्ताद हैं। आज 25 मई को उनके यौमे पैदाईश पर हम उन्हें ख़िराजे अकीदत पेश करते हैं और अपील करते हैं इन जैसी सभी अज़ीम शख्सियात को याद करना चाहिए।
क्योंकि अगर हम इस देश में अमन चाहते हैं, भाईचारे का माहौल चाहते हैं, तो हमें उर्दू के लिए मेहनत करनी होगी। क्योंकि उर्दू भाषा ही एक ऐसी भाषा है जिसने लोगों को हमेशा जोड़े रखा है और भविष्य में उर्दू भाषा और संस्कृति ही भारत को जोड़े रख सकती है।
हमें आने वाली पीढ़ियों को उर्दू भाषा सिखाने का प्रयास करना चाहिए। खुद उर्दू पढ़ो, उर्दू लिखो और उर्दू बोलो और अपने बच्चों को भी ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित करो। अपने घरों में एक उर्दू अखबार जरूर लगवाएं ताकि इस प्यारी भाषा की पहचान बनी रहे और उर्दू भाषा और संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए हर संभव प्रयास करें।
भारत है इसका मसकन, भारत है इसका गुलशन
भारत की है दुलारी उर्दू जु़बान हमारी