मदारिसे इस्लामिया के पाठ्यक्रम की जांच निराधार है, राज्य के प्रमुख होने के नाते अपने ही राज्य के मदरसों पर संदेह करना, उनकी अपनी व्यवस्था और काम करने के तरीके पर सवाल उठाना। इसलिए कि ये आपके अधीन चलते हैं, यहां परीक्षाएं भी आप ही आयोजित करतें हैं। सरकारी अनुदान भी दिया जाता है, फिर ये मदरसे अवैध कैसे हो सकते हैं? हां ये और बात है कि एक मख़सुस तबक़े का ताअल्लुक़ इन मदरसो से होने की वजह से सरकार ने सब कुछ ख़त्म कर दिया है और अब इन अमन के गेहवारों को भी ख़त्म करने की साजि़श और चाल चल रही है।
मदारिसे इस्लामिया हमेशा शांति के गेहवारे रहें है। यहां से हमेशा मानवता, भाईचारे और प्यार का संदेश दिया जाता है। कभी भी मदरसों से किसी का नुकसान नहीं हुआ है और आपसी भाईचारे की शिक्षा हमेशा यहीं से दी जाती है। यह कैसे हो सकता है कि जो इस्लाम अपने पड़ोसियों को भी दुख न देना सिखाता हो वह पूरे देश में और पूरी दुनिया में इंसानियत के खिलाफ कोई बात करे। ये बातें मध्य प्रदेश सरकार की एक खास मानसिकता को बताती हैं। सवाल यह है कि मदारिस में क्या पढ़ाया जाता है? क़ोम के बच्चों को क्या शिक्षा देते हैं
क्या उन्हें आतंकवादी बनाया जाता है?
मदरसों में बच्चों को बड़ों की इज़्ज़त करना, चोटों के साथ अच्छा व्यवहार करना सिखाया जाता है, मदरसों में सिखाया जाता है कि अगर आपका पड़ोसी भूखा है और आप भरपेट खाते हैं तो आप मुसलमान नहीं हो सकते, मदरसों में सिखाते हैं कि रास्ते से तकलीफ देने वाली चीज़ हटाना आपका दायित्व है, अपने माता-पिता पर दया करना, बच्चों सिखाया जाता है कि भूखे को खाना खिलाओ, प्यासे को पानी पिलाओ। जिनके पास कपड़े नहीं हैं, उन्हें पहनने के लिए कपड़े दो, यह सब तुम्हारे लिए ज़रूरी है और इसके अलावा मदरसों में इंसानियत की हर वो बात सिखाई जाती है, जो एक अक्लमंद इंसान अपने बच्चों को सिखाना चाहता है जो मानवता के लिए अच्छी हों और देश के लिए उपयोगी हों।
मौजूदा दौर में जब चुनाव नजदीक आता है तो मदरसों को निशाना बनाया जाता है.कभी मदरसों के सर्वे के नाम पर तो कभी मदरसों के पाठ्यक्रम को लेकर. हाल ही में कई प्रिंट मीडिया में छपी खबर में कहा गया कि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री ने मदरसों की जांच करने को कहा है।उन्होने कहा है कि गेर कानुनी चलने वाले मदरसों व अन्य ऐसे संस्थान जहाँ कट्टरता सिखाइ जा रही है, उनकी जांच की जाएगी। अब सवाल यह है किः
(1) अवैध मदरसों का क्या अर्थ है? वो मदरसे जो राज्य मदरसा बोर्ड के साथ पंजीकृत नहीं हैं, वो मदरसे भी मुस्लिम अंजुमन / समितियों द्वारा चलाए जाते हैं जिनकी एक औपचारिक प्रणाली होती है जो आईने की तरह साफ है। यह सब केवल एक प्रोपेगंडा है जो एक विशेष जाति और धर्म के खिलाफ फैलाया जा रहा है और इस झूठे प्रोपेगंडा को फैलाकर सत्ता में वापस नहीं आया जा सकता है।
(2) मदरसा चलाने वाली संस्थाएं ज्यादातर रजिस्ट्रेशन फर्म्स एंड सोसाइटीज एक्ट के तहत रजिस्टर्ड होती हैं और अपना काम नियमित रूप से करती हैं, जैसे ऑडिट कराना, हर साल रजिस्ट्रार सोसाइटी को रिपोर्ट करना आदि।
(3) मध्य प्रदेश में कई मदरसे हैं जिनमें सिर्फ हाफिज़े कुरान, आलिम, मुफ़्ती आदि के स्तर पर इस्लामी शिक्षा दी जाती है। इसका मतलब यह नहीं निकाला जा सकता कि इस्लाम की शिक्षाओं में केवल कट्टरता और उग्रवाद है, बल्कि इस्लाम की शिक्षाओं में शांति और प्रेम का संदेश है।
इस्लाम ही शांति और प्रेम है और शांति और ही प्रेम इस्लाम है।
(4) राज्य में और भी कई संगठन हैं जो कानूनी रूप से पंजीकृत हैं, ज़रा उनके कामकाज की भी समीक्षा की जानी चाहिए। आज क्या वजह है कि बहुत सारे त्यौहार हैं जो पहले से ही दंगे और फ़साद के संकेत दे देते हैं? चुनावी वर्ष में यह सब अधिक होने लगता है।
(5) किसी भी मदरसे में किसी भी प्रकार की कट्टरता की शिक्षा नहीं दी जाती है, यह सब बकवास और मनघड़त बातें हैं और यदि कही ऐसी कोई शिक्षा दी जाता है, तो वो मदरसा नहीं हो सकता है और ऐसी संस्थाओं के खिलाफ अगर पुख्ता सबूत हों तो उनके खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए। लेकिन एक की मिसाल बनाकर पूरे समाज और उसके धार्मिक शिक्षण संस्थानों पर प्रतिबंध लगाने या इस तरह की बेतुकी टिप्पणियां करना नेताओं को शोभा नहीं देता। मदरसों पर इस तरह टिप्पणी करना एक वर्ग को खुश करना और दूसरे वर्ग को प्रताड़ित कर अपनी राजनीति चलाना हैं। लेकिन सच तो यह है कि सरकार असल समस्या से लोगों का ध्यान हटाना चाहती है, सरकार रोज़गार की बात नहीं करती, मंहगाई सिर चढ़कर बोल रही है, इस पर कोई मुंह नहीं खोलता, ईवीएम से चुनाव न हो इसकी मांग हो रही लेकिन कोई ध्यान नहीं दे रहा है, पेंशन बहाल नहीं की जा रही है बल्कि सिर्फ विधायक, सांसद को दी जा रही है, पेंशन योजना से केवल गरीबों को ही क्यों वंचित रखा जा रहा है? और सरकार के मुखिया एक पूर्व गवर्नर की बातों का जवाब क्यों नहीं दे रहे हैं, आज देश के लिए मेडल लाकर देश का नाम रौशन करने वाली लड़कियां जंतर-मंतर पर बैठकर न्याय मांग रही हैं, उनकी सुनवाई क्यों नहीं हो रही है? बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ के नारे लगाने वाले लोग कहां हैं?
कितने ही संगठन हैं जो सत्ता पक्ष के ही हैं जो समाज में ज़हर घोल रहे हैं, उनकी चर्चा नहीं हाेती है बस बात अगर होती है तो सिर्फ मदरसों की। हालांकि इनही मस्जिदों और मदरसों से आज़ादी का आंदोलन चला जिससे हमारा देश आज़ाद हुआ। किसी भी सोबे का मुखिया होने के नाते क्या नेताओं को ऐसी बातें करना शोभा देता है, भारतीय संविधान में भी लिखा है कि हर धर्म और उस धर्म के मानने वालों की सुरक्षा सरकार की ज़िम्मेदारी है, क्या आप अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं? पार्टी को खुद पूछना चाहिए कि क्या आप असली मुद्दों से ध्यान भटका कर सत्ता में वापस आ जाएंगे। जब कि आप हर तरफ से नाकाम हो चुके हैं। त्योहारों के नाम पर हर जगह दंगे हो रह े हैं, लिंचिंग हो रही है उसकी जांच की आप को चिंता नही। बस आपको चिंता है तो केवल इन मदरसों की जहां अधिकांश गरीब बच्चे हैं । गरीब छात्र यहां से इंसानियत की शिक्षा प्राप्त करते हैं। ये मदरसे आज़ादी की लड़ाई से लेकर
आज तक देश की सेवा करते आ रहे हैं।