यशोदा श्रीवास्तव

आज जब यूपी की राजनीति में मुस्लिम समाज के मौजूदगी की बात होती है तब मरहूम तौफीक कुरैशी जैसी शख्सियतों का याद आना लाजिमी है।पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति में तो वे एक नामचीन हस्ती थे। हम जब उन्हें राजनीति से अलग करके देखते हैं तो वे अजीम शख्सियत होते हैं जिनका समाज के सभी तबकों में बराबर का सम्मान था, वे खुद में जीता जागता मोहब्बत का पैगाम थे।

सहारनपुर, देवबन्द और आसपास के तमाम क्षेत्रों में वे नेता जी के नाम से जाने जाते थे। मैं समझता हूं स्व.मुलायम सिंह के बाद यूपी में नेता उपनाम धारी कोई राजनीतिक शख्सियत था तो वे तौफीक कुरैशी साहब थे। मूलतः देवबन्द के मोहल्ला बैरून कोटला के रहने वाले तौफीक कुरैशी का ज्यादा वक्त लखनऊ में बीता जहां उन्हें लोग चाचा कहना पसंद करते थे। नेता जी तो वे छात्र जीवन से ही कहलाने लगे थे। वे जमीयतुल कुरैश के यूपी युनिट के महामंत्री रहे हैं। 80 वर्ष की अवस्था में 10 मई 2021 को उनका इंतकाल हुआ।

समाज में किसी की हैसियत का अंदाजा उसके आखिरी वक्त पर ही लग पाता है। तौफीक कुरैशी की स्वीकार्यता सर्वसमाज में थी जिसका सबूत उनके इंतकाल के बाद दारूल उलूम के आहत ए मौलसरी में नमाज ए जनाजा और फिर ईदगाह रोड स्थित कब्रिस्तान में दफनाते वक्त उमड़ी भीड़ थी जहां मशहूर और मारूफ शायर डाक्टर नवाज देवबन्दी थे तो मुकामी विधायक कुंवर ब्रजेश सिंह भी थे (वर्तमान यूपी सरकार में लोक निर्माण विभाग के राज्य मंत्री हैं।) पूर्व विधायक माविया अली आदि जैसे लोग भी थे। वे जब दुनिया से रुखसत हुए तो उस रोज रमजान का छब्बीसवां रोजा था और सत्ताइसवीं शब थी रात के 12 बज रहे थे और आप दुनिया से रूखसत हो गए थे। इस्लाम में यह बहुत पवित्र महीना होता है। तौफीक कुरैशी की पहचान एक धार्मिक विद्वान की भी रही लेकिन उनकी खास रुचि समाज सेवा और राजनीति में ही थी। वे चौधरी चरण सिंह के काफी करीबी थे। बाद में कांग्रेस की राजनीति में भी सक्रिय रहे। कांग्रेस में वे संगठन के विभिन्न पदों पर थे। अपने जीवन के अंतिम समय तक वे कांग्रेस में ही रहे। तौफीक कुरैशी साहब की खास बात यह थी कि वे चाहे चरण सिंह के नजदीक रहे हों या बाद में कांग्रेस में, उन्हें कभी किसी पद की लालसा नहीं रही।अचरज की बात है लोगों में राजनीति में कदम रखते ही या किसी बड़ी राजनीतिक शख्सियत के संगत में आते ही एमपी एमएलए बनने की महत्वाकांक्षा उफान मारने लगती है वहीं कुरैशी साहब ने चौधरी चरण सिंह का एमएलसी बनाने का आफर विनम्रता पूर्वक अस्वीकार कर दिया था। हां उनमें यह जरूर था कि जिसे वे हद तक मानते हों वह उनकी बात जरूर सुनते थे।और उनकी बात सुनी भी जाती थी। एक वाक़या याद आता है जब चरण सिंह की यूपी और देश की राजनीति में तूती बोलती थी। केंद्र में जनता पार्टी की सरकार थी।

यूपी में रामनरेश यादव मुख्यमंत्री थे। कुरैशी साहब चरण सिंह के पास पहुंच गए यूपी के हरिजन समाज कल्याण मंत्री राम सिंह माण्डेबास का विभाग बदलवाने। विभाग भी ऐसा वैसा नहीं, वे सीधे राम सिंह को गृहमंत्री बनाने की मांग कर बैठे। सोचिए चौधरी चरण सिंह तौफीक कुरैशी को कितना मानते थे कि उन्होंने बिना कुछ सोचे समझे यूपी के मुख्यमंत्री को फोन कर कह दिया कि राम सिंह को गृहमंत्री बना दो और राम सिंह हरिजन समाज कल्याण मंत्री से गृह मंत्री बन गए। इसी समय चरण सिंह ने तौफीक कुरैशी साहब को विधान परिषद में भेजने का प्रस्ताव रखा था। कुरैशी साहब ने खुद के बदले किसी और को विधान परिषद में भेजने का आग्रह किया।इधर राम सिंह के गृहमंत्री रहते वक्त गृह विभाग में कई रिक्तियां निकली। कुरैशी साहब के सिफारिश पर भी कई नियुक्तियां हुईं लेकिन मजाल है जो किसी से एक रूपया भी नाजायज लिया गया हो। कुरैशी साहब की यह ईमानदारी देख गृहमंत्री राम सिंह भी दंग रह गए। यूपी और केंद्र की राजनीति में एक और नाम था रशीद मसूद का‌। रशीद मसूद यूपी लोकदल के अध्यक्ष भी थे। इन्हें चरण सिंह के निकट ले जाने वाले तौफीक कुरैशी ही थे। रशीद मसूद को चरण सिंह ने जब यूपी लोकदल की कमान सौंपी तब चरण सिंह के निकट यूपी के एक बड़े यादव नेता ने इसका विरोध करते हुए कहा था कि यूपी में मुसलमानों को बढ़ावा देना ठीक नहीं है तब चरण सिंह ने कहा कि इसमें कुछ नहीं हो सकता,तौफीक ने रशीद की पैरवी की है। बाद में 1984 के विधानसभा चुनाव में एक टिकट को लेकर तौफीक कुरैशी की रशीद मसूद से अनबन हो गई और वे कांग्रेस में जाने को मजबूर हुए। हुआ यूं कि तौफीक कुरैशी साहब भायला गांव के मजिस्ट्रेट बाबू मंगत सिंह के पुत्र राजेन्द्र पाल सिंह एडवोकेट को देवबन्द से चुनाव लड़ाना चाहते थे जबकि रशीद मसूद किसी और के पक्ष में थे। अंततः रशीद मसूद के पसंदीदा उम्मीदवार को ही टिकट मिला।

इस घटना से तौफीक कुरैशी इतना दुखित और छुब्ध हुए कि उन्होंने एक झटके में चौधरी चरण सिंह का साथ छोड़ दिया। रशीद मसूद तौफीक कुरैशी को मनाने उनके घर गए। कई घंटे मशक्कत हुई लेकिन उसूलों के पक्के तौफीक साहब टस से मस नहीं हुए। उन्होंने रशीद मसूद और चरण सिंह के साथ जाने से साफ इंकार कर दिया।इधर जैसे ही तौफीक कुरैशी ने चौधरी चरण सिंह को अलविदा कहा वैसे ही कांग्रेस ने उन्हें लपक लिया।कांग्रेस विधायक ठाकुर महावीर सिंह की पहल पर वे कांग्रेस में शामिल हो गए।एक न एक दिन दुनिया से जाना ही है, यही सच है लेकिन साथ ही यह भी तय होना होता है कि दुनिया से जाने वाले ने हयातें ज़िंदगी में कैसे कार्य किए, अगर उसने अच्छे काम किए तो दुनिया में मौजूद लोग उनको उनके द्वारा किए गए अच्छे कार्यों के लिए याद करते हैं। उनके कार्य ही उन्हें अमर कर जाते हैं। शिद्दत से कहना चाहूंगा कि छात्र जीवन से नेता जी नामधारी तौफीक कुरैशी साहब को आज इसलिए याद किया जा रहा कि वे अपने उसूलों के पक्के थे,इतने कि इसके लिए चाहे कोई भी क़ुर्बानी देनी पड़े, वह पीछे नहीं हटते थे।

उनके सर्किल में मौजूद लोगों ने उनका भरपूर फ़ायदा उठाया, इसका उन्होंने कभी बखान नहीं किया। उनमें और एक ख़ासियत थी,कि वे अपनी राजनीति चमकाने के लिए आपस में लड़ाने का कोई काम नहीं करते थे। सत्ता और राजनीति के इस रसूखदार शख्स ने अपने और अपनी औलादों के लिए कुछ नहीं किया लेकिन इसका जरा भी मलाल उनकी औलादों को नहीं है। कुरैशी साहब से जब कोई उनकी ज़िम्मेदारियों को गिनाता था तो उनका कहना होता था कि यह काम मेरा नहीं अल्लाह का है।जिसने यह जिम्मदारियां दी है वही पूरी भी करेगा। इसके लिए मैं ग़लत तरीक़ों को अख़्तियार करूं, यह मुझे मंज़ूर नहीं। तौफ़ीक़ क़ुरैशी कहते थे कि नेकी कर दरिया में डाल! वेशक तौफ़ीक़ क़ुरैशी जैसे जनसेवक अमर होने वाली शख़्सियत हैं।ऐसे लोग कभी नहीं मरते, वह अमर होते हैं और हमेशा याद किए जाते रहे हैं, किए जाते रहेंगे।