सलीम-जावेद द्वारा लिखी इस फिल्म का निर्माण गोपाल दास सिप्पी ने और निर्देशन का कार्य, उनके पुत्र रमेश सिप्पी ने किया है। इसकी कहानी जय (अमिताभ बच्चन) और वीरू (धर्मेन्द्र) नामक दो अपराधियों पर केन्द्रित है, जिन्हें डाकू गब्बर सिंह (अमजद ख़ान) से बदला लेने के लिए पूर्व पुलिस अधिकारी ठाकुर बलदेव सिंह (संजीव कुमार) अपने गाँव लाता है। जया भादुरी और हेमा मालिनी ने भी फ़िल्म में मुख्य भूमिकाऐं निभाई हैं। शोले को भारतीय सिनेमा की सर्वश्रेष्ठ फिल्मों में से एक माना जाता है। ब्रिटिश फिल्म इंस्टिट्यूट के २००२ के “सर्वश्रेष्ठ १० भारतीय फिल्मों” के एक सर्वेक्षण में इसे प्रथम स्थान प्राप्त हुआ था। 2005 में पचासवें फिल्मफेयर पुरस्कार समारोह में इसे पचास सालों की सर्वश्रेष्ठ फिल्म का पुरस्कार भी मिला।
शोले का फिल्मांकन कर्नाटक राज्य के रामनगर क्षेत्र के चट्टानी इलाकों में ढाई साल की अवधि तक चला था। केन्द्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड के निर्देशानुसार कई हिंसक दृश्यों को हटाने के बाद फ़िल्म को 198 मिनट की लंबाई के साथ 15 अगस्त 1975 को रिलीज़ किया गया था। हालांकि 1990 में मूल 204 मिनट का मूल संस्करण भी होम मीडिया पर उपलब्ध हो गया था। रिलीज़ होने पर पहले तो शोले को समीक्षकों से नकारात्मक प्रतिक्रियाएं और कमजोर व्यावसायिक परिणाम मिले, लेकिन अनुकूल मौखिक प्रचार की सहायता से थोड़े दिन बाद यह बॉक्स ऑफिस पर बड़ी सफलता बनकर उभरी। फ़िल्म ने पूरे भारत में कई सिनेमाघरों में निरंतर प्रदर्शन के लिए रिकॉर्ड तोड़ दिए, और मुंबई के मिनर्वा थिएटर में तो यह पांच साल से अधिक समय तक प्रदर्शित हुई। कुछ स्त्रोतों के अनुसार मुद्रास्फीति के लिए समायोजित करने पर यह सर्वाधिक कमाई करने वाली भारतीय फिल्म है।
शोले एक डकैती-वॅस्टर्न फिल्म है, जो वॅस्टर्न शैली के साथ भारतीय डकैती फिल्मों परम्पराओं का संयोजन करती है, और साथ ही मसाला फिल्मों का एक परिभाषित उदाहरण है, जिसमें कई फिल्म शैलियों का मिश्रण पाया जाता है। विद्वानों ने फिल्म के कई विषयों का उल्लेख किया है, जैसे कि हिंसा की महिमा, सामंती विचारों का परिवर्तन, सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखने वालों और संगठित होकर लूट करने वालों के बीच बहस, समलैंगिक गैर रोमानी सामाजिक बंधन और राष्ट्रीय रूपरेखा के रूप में फिल्म की भूमिका। राहुल देव बर्मन द्वारा रचित फिल्म की संगीत एल्बम और अलग से जारी हुए संवादों की संयुक्त बिक्री ने कई नए बिक्री रिकॉर्ड सेट किए। फिल्म के संवाद और कुछ पात्र बेहद लोकप्रिय हो गए और भारतीयों के दैनिक रहन-सहन हिस्सा बन गए। जनवरी २०१४ में, शोले को ३डी प्रारूप में सिनेमाघरों में फिर से रिलीज़ किया गया था।
अमजद खान से पहले उन्हें चुना गया था गब्बर
फिल्म में गब्बर की भूमिका निभा कर अमजद खान को एक नई पहचान मिली थी। मगर अमजद खान से पहले फिल्म के डायरेक्टर रमेश सिप्पी की पसंद डैनी डेन्जोंगपा थे। डैनी ने स्पॉटबॉय को दिए अपने पुराने इंटरव्यू में इस बात का जिक्र खुद ही किया था। उन्होंने कहा था, ‘मेरे को इस बात का बिल्कुल भी अफसोस नहीं है कि मैंने ‘गब्बर’ की भूमिका को छोड़ दिया। क्योंकि अगर मैं गब्बर होता, तो हम सबको अमजद खान की इतना बेहतरीन अदाकारी कैसे देखने को मिलती।’ दरअसल, जब डैनी को फिल्म ‘शोले’ में गब्बर का रोल ऑफर हुआ था, तब वह कोई और ही फिल्म कर रहे थे और समय की समस्या होने के कारण उन्होंने फिल्म ‘शोले’ छोड़ दी थी।
फिल्म की शूटिंग के लिए बसाया गया था नया गांव
फिल्म के निर्देशक रमेश सिप्पी ने अपने एक पुराने इंटरव्यू में बताया था कि यह फिल्म लगभग 3 करोड़ रुपए के बजट में तैयार की गई है। इस फिल्म को बेंगलुरु और मैसूर (मैसूर ट्रैवल गाइड) के बीच बसे एक गांव रामनगर में शूट किया गया था। फिल्म में इस स्थान को रामगढ़ बताया गया है। फिल्म की शूटिंग के लिए इस गांव में पक्की सड़क बनवाई गई थी और गांव के एक स्थान को अलग से नए गांव की तरह बनाया गया था। फिल्म की शूटिंग 2 साल तक चली थी। शूटिंग के बाद इस गांव को प्रोडक्शन टीम ने खत्म करने के लिए सारा सामान नीलाम कर दिया था और बांट दिया था। मगर आज भी रामनगर गांव के उस हिस्से को ‘सिप्पी नगर’ कहा जाता है, जहां पर फिल्म की शूटिंग हुई थी।
फिल्म में लिए गए कई रीटेक
गब्बर सिंह का पॉपुलर डायलॉग ‘कितने आदमी थे’ बेशक केवल 3 शब्दों का था, मगर इस डायलॉग में परफेक्शन लाने के लिए लगभग 40 बार रीटेक हुए थे। इतना ही नहीं, जया बच्चन के लालटेन जलाने वाले सीन को फिल्माने के लिए 20 दिन का इंतजार किया गया था और इसके लिए जया को 26 रीटेक देने पड़े थे। इस बात की जानकारी खुद महानायक अमिताभ बच्चन ने एक पुराने इंटरव्यू में दी थी, जो खुद भी इस फिल्म में जय की भूमिका में थे।
बदला गया था ये सीन
वर्ष 1975 में जब देश में इमरजेंसी लगाई गई थी, तब हिंदी सिनेमा को भी सेंसरशिप लॉ का सामना करना पड़ा था। सेंसर ने फिल्म ‘शोले’ के भी एक सीन पर कैंची चलाई थी और यह सीन था फिल्म का क्लाइमेक्स। फिल्म में गब्बर को ठाकुर के नुकीले जूतों से मरता हुआ दिखाया गया था। मगर सेंसर बोर्ड के कहने पर इस सीन को बदला गया था और फिल्म के क्लाइमेक्स को दोबारा से शूट किया गया था, जिसमें गब्बर को पुलिस के हवाले करते हुए दिखाया गया था।
सलीम-जावेद द्वारा लिखी इस फिल्म का निर्माण गोपाल दास सिप्पी ने और निर्देशन का कार्य, उनके पुत्र रमेश सिप्पी ने किया है। इसकी कहानी जय (अमिताभ बच्चन) और वीरू (धर्मेन्द्र) नामक दो अपराधियों पर केन्द्रित है, जिन्हें डाकू गब्बर सिंह (अमजद ख़ान) से बदला लेने के लिए पूर्व पुलिस अधिकारी ठाकुर बलदेव सिंह (संजीव कुमार) अपने गाँव लाता है। जया भादुरी और हेमा मालिनी ने भी फ़िल्म में मुख्य भूमिकाऐं निभाई हैं। शोले को भारतीय सिनेमा की सर्वश्रेष्ठ फिल्मों में से एक माना जाता है। ब्रिटिश फिल्म इंस्टिट्यूट के २००२ के “सर्वश्रेष्ठ १० भारतीय फिल्मों” के एक सर्वेक्षण में इसे प्रथम स्थान प्राप्त हुआ था। 2005 में पचासवें फिल्मफेयर पुरस्कार समारोह में इसे पचास सालों की सर्वश्रेष्ठ फिल्म का पुरस्कार भी मिला।
शोले का फिल्मांकन कर्नाटक राज्य के रामनगर क्षेत्र के चट्टानी इलाकों में ढाई साल की अवधि तक चला था। केन्द्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड के निर्देशानुसार कई हिंसक दृश्यों को हटाने के बाद फ़िल्म को 198 मिनट की लंबाई के साथ 15 अगस्त 1975 को रिलीज़ किया गया था। हालांकि 1990 में मूल 204 मिनट का मूल संस्करण भी होम मीडिया पर उपलब्ध हो गया था। रिलीज़ होने पर पहले तो शोले को समीक्षकों से नकारात्मक प्रतिक्रियाएं और कमजोर व्यावसायिक परिणाम मिले, लेकिन अनुकूल मौखिक प्रचार की सहायता से थोड़े दिन बाद यह बॉक्स ऑफिस पर बड़ी सफलता बनकर उभरी। फ़िल्म ने पूरे भारत में कई सिनेमाघरों में निरंतर प्रदर्शन के लिए रिकॉर्ड तोड़ दिए, और मुंबई के मिनर्वा थिएटर में तो यह पांच साल से अधिक समय तक प्रदर्शित हुई। कुछ स्त्रोतों के अनुसार मुद्रास्फीति के लिए समायोजित करने पर यह सर्वाधिक कमाई करने वाली भारतीय फिल्म है।
शोले एक डकैती-वॅस्टर्न फिल्म है, जो वॅस्टर्न शैली के साथ भारतीय डकैती फिल्मों परम्पराओं का संयोजन करती है, और साथ ही मसाला फिल्मों का एक परिभाषित उदाहरण है, जिसमें कई फिल्म शैलियों का मिश्रण पाया जाता है। विद्वानों ने फिल्म के कई विषयों का उल्लेख किया है, जैसे कि हिंसा की महिमा, सामंती विचारों का परिवर्तन, सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखने वालों और संगठित होकर लूट करने वालों के बीच बहस, समलैंगिक गैर रोमानी सामाजिक बंधन और राष्ट्रीय रूपरेखा के रूप में फिल्म की भूमिका। राहुल देव बर्मन द्वारा रचित फिल्म की संगीत एल्बम और अलग से जारी हुए संवादों की संयुक्त बिक्री ने कई नए बिक्री रिकॉर्ड सेट किए। फिल्म के संवाद और कुछ पात्र बेहद लोकप्रिय हो गए और भारतीयों के दैनिक रहन-सहन हिस्सा बन गए। जनवरी २०१४ में, शोले को ३डी प्रारूप में सिनेमाघरों में फिर से रिलीज़ किया गया था।
अमजद खान से पहले उन्हें चुना गया था गब्बर
फिल्म में गब्बर की भूमिका निभा कर अमजद खान को एक नई पहचान मिली थी। मगर अमजद खान से पहले फिल्म के डायरेक्टर रमेश सिप्पी की पसंद डैनी डेन्जोंगपा थे। डैनी ने स्पॉटबॉय को दिए अपने पुराने इंटरव्यू में इस बात का जिक्र खुद ही किया था। उन्होंने कहा था, ‘मेरे को इस बात का बिल्कुल भी अफसोस नहीं है कि मैंने ‘गब्बर’ की भूमिका को छोड़ दिया। क्योंकि अगर मैं गब्बर होता, तो हम सबको अमजद खान की इतना बेहतरीन अदाकारी कैसे देखने को मिलती।’ दरअसल, जब डैनी को फिल्म ‘शोले’ में गब्बर का रोल ऑफर हुआ था, तब वह कोई और ही फिल्म कर रहे थे और समय की समस्या होने के कारण उन्होंने फिल्म ‘शोले’ छोड़ दी थी।
फिल्म की शूटिंग के लिए बसाया गया था नया गांव
फिल्म के निर्देशक रमेश सिप्पी ने अपने एक पुराने इंटरव्यू में बताया था कि यह फिल्म लगभग 3 करोड़ रुपए के बजट में तैयार की गई है। इस फिल्म को बेंगलुरु और मैसूर (मैसूर ट्रैवल गाइड) के बीच बसे एक गांव रामनगर में शूट किया गया था। फिल्म में इस स्थान को रामगढ़ बताया गया है। फिल्म की शूटिंग के लिए इस गांव में पक्की सड़क बनवाई गई थी और गांव के एक स्थान को अलग से नए गांव की तरह बनाया गया था। फिल्म की शूटिंग 2 साल तक चली थी। शूटिंग के बाद इस गांव को प्रोडक्शन टीम ने खत्म करने के लिए सारा सामान नीलाम कर दिया था और बांट दिया था। मगर आज भी रामनगर गांव के उस हिस्से को ‘सिप्पी नगर’ कहा जाता है, जहां पर फिल्म की शूटिंग हुई थी।
फिल्म में लिए गए कई रीटेक
गब्बर सिंह का पॉपुलर डायलॉग ‘कितने आदमी थे’ बेशक केवल 3 शब्दों का था, मगर इस डायलॉग में परफेक्शन लाने के लिए लगभग 40 बार रीटेक हुए थे। इतना ही नहीं, जया बच्चन के लालटेन जलाने वाले सीन को फिल्माने के लिए 20 दिन का इंतजार किया गया था और इसके लिए जया को 26 रीटेक देने पड़े थे। इस बात की जानकारी खुद महानायक अमिताभ बच्चन ने एक पुराने इंटरव्यू में दी थी, जो खुद भी इस फिल्म में जय की भूमिका में थे।
बदला गया था ये सीन
वर्ष 1975 में जब देश में इमरजेंसी लगाई गई थी, तब हिंदी सिनेमा को भी सेंसरशिप लॉ का सामना करना पड़ा था। सेंसर ने फिल्म ‘शोले’ के भी एक सीन पर कैंची चलाई थी और यह सीन था फिल्म का क्लाइमेक्स। फिल्म में गब्बर को ठाकुर के नुकीले जूतों से मरता हुआ दिखाया गया था। मगर सेंसर बोर्ड के कहने पर इस सीन को बदला गया था और फिल्म के क्लाइमेक्स को दोबारा से शूट किया गया था, जिसमें गब्बर को पुलिस के हवाले करते हुए दिखाया गया था।