वो ना सिर्फ़ इस्लाम के इतिहास में बल्कि दुनिया के इतिहास के मशहूर तरीन फ़ातहीन व हुक्मरानों में से एक हैं। वो 1137 ईस्वी में मौजूदा इराक के शहर

तकरीयत में पैदा हुए उनकी ज़ेर-ए-क़यादत अय्यूबी सल्तनत में मिस्र, शाम, यमन, इराक़, हजाज़ और दयार-ए-बाकर पर हुकूमत की सलाहुद्दीन अय्यूबी की बहादुरी, जुरअत, हुस्न ख़ल्क, सखावत और बर्दबारी के बाअस ना सिर्फ मुसलमान बल्कि ईसाई भी इज्जत की निगाह से देखते हैं।

तीसरी सलीबी जंग में सुल्तान सलाहुद्दीन अय्यूबी ने साबित कर दिया कि वो दुनिया का सबसे ताकतवर हुक्मरान है। सलाहुद्दीन अय्यूबी बड़े बहादुर और फ़ैयाज़ थे । लड़ाइयों में ईसाइयों के साथ इतना अच्छा सुलूक किया कि ईसाई आज भी उनकी इज्जत करते हैं। उनको संघर्ष का इतना शौक था कि एक मर्तबा उनके निचले हिस्से में फोड़े हो गए जिसकी वजह से वो बैठकर खाना नहीं खा सकते थे, लेकिन इस हालात में भी संघर्ष और जद्दोजहद की सरगर्मी में फ़र्क़ नहीं आया सुबह से लेकर ज़ोहर और असर से लेकर मगरिब तक बराबर घोड़े की पीठ पर रहते उनको खुद ताअज्जुब होता था और कहा करते थे कि जब तक घोड़े की पीठ पर रहता हूं सारी तकलीफ जाती रहती है और उसके ऊपर ज़े उतरने पर फिर तकलीफ शुरू हो जाती है।

ईसाइयों से सुलह हो जाने के बाद सलाहुद्दीन अय्यूबी ने बैत-उल-मुक़द्दस की ज़ियारत करने की इजाजत दी इजाज़त मिलने पर बरसों से जो जायरीन इंतजार कर रहे थे वो टूट पड़े । बादशाह रिचर्ड के लिए इंतजाम कायम रखना मुश्किल हो गया और उसने सुल्तान से कहा कि वो उसकी तहरीर और इजाजत के बगैर किसी को भी बैत-उल-मुकद्दस में दाखिल होने की इजाज़त ना दें।

सुल्तान सलाहुद्दीन अय्यूबी ने जवाब दिया जायरीन बड़ी-बड़ी मुसाफतें तय करके जियारत को आते हैं उनको रोकना मुनासिब नहीं सुल्तान सलाहुद्दीन अय्यूबी ने ना सिर्फ ये के उन ज़ायरीन को अंदर आने की इजाज़त दी बल्कि उन ज़ायरीन को हर किस्म की आजादी दी बल्कि अपनी जानिब से लाखों जायरीन की मदारात, राहत, असायेश, और दावत का इंतजाम भी किया

सलाहुद्दीन अय्यूबी का गैर मुस्लिमों के साथ सुलुक ऐन इस्लामीक तालीमात के मुताबिक था और ये उसका सबूत है कि इस्लामी हुकूमत में ग़ैर मुसलमानों के हुक़ूक़ भी उसी तरह महफूज़ हुए जिस तरह मुसलमानों के,नूरुद्दीन की तरह सुल्तान सलाहुद्दीन अय्यूबी की जिंदगी बड़ी सादा थी रेशमी कपड़े कभी इस्तेमाल नहीं किए और रहने के लिए जगह मामूली सा मकान होता था।

काहिरा पर कब्जे के बाद जब उसने फ़ातमी हुक्मरानों के हालात का जायजा लिया तो वहां बेशुमार जवाहरात और सोने, चांदी के बर्तन जमा थे सुल्तान सलाहुद्दीन अय्यूबी ने ये सारी चीजें अपने कब्जे में लेने के बजाए बैत-उल-माल में दाखिल कर दिया के महालात को आम इस्तेअमाल में लाया गया, और एक महल में अज़ीमुश्शान खानक़ाह कायम की गई।

फ़ातमियों के जमाने में मदरसे क़ायम नहीं किए गए शाम में तो नूरुद्दीन जंगी के जमाने में मदरसे और अस्पताल क़ायम हुए। लेकिन मिस्र अब तक महरूम था सलाहुद्दीन अय्यूबी ने यहां कसरत से मदरसे और अस्पताल कायम किए। उन मदारिस में स्टूडेंट्स के रहने व खाने का इंतज़ाम भी सरकारी ख़ज़ाने से होता था

काहिरा में सलाहुद्दीन अय्यूबी के कायम करदा शिफाखाने के बारे में एक स्याह इब्न जुबैर लिखता है, कि ये अस्पताल एक महल की तरह मालूम होता है। जिसमें दवाओं का बहुत बड़ा जखीरा है उसने औरतों के अस्पताल और पागल खाने का भी जिक्र किया है। सलाहुद्दीन अय्यूबी सल्तनतें गौरैया के हुक्मरान शहाबुद्दीन गौरी और मराकशी हुक्मरान याकूब-अल-मंसूर का हम असर था और बिला शुब्हा ये तीनों हुक्मरान अपने वक़्त में दुनिया के अजीम तरीन हुक्मरान में से थे।

4 मार्च 1193 बमुताबिक 589 हिजरी सुल्तान सलाहुद्दीन अय्यूबी इंतकाल कर गए । उन्हें शाम के मौजूदा हुकूमत दमिश्क में मस्जिद उमया के नवाह में सुपुर्द-ए-खाक किया गया। सुल्तान सलाहुद्दीन अय्यूबी ने कुल 20 साल हुकूमत की, लेखक इब्न ख़ल्कान के मुताबिक सलाहुद्दीन अय्यूबी की मौत का दिन इतना तकलीफ देह था कि ऐसा तकलीफ देह दिन इस्लाम और मुसलमानों पर खोल्फा-ए-राशिदीन की मौत के बाद कभी नहीं आया।

मौजूदा दौर के एक अंग्रेज़ लेखक “लीन पोल” ने भी सुल्तान की बड़ी तारीफ की है और लिखता है कि उसके हमअस्र बादशाहो और उनमें एक अजीब फ़र्क़ था बादशाहों ने अपने जाह व जलाल के सबब इज़्ज़त पायी लेकिन सुल्तान सलाहुद्दीन अय्यूबी ने अवाम से मुहब्बत और उनके मुआमलात में दिलचस्पी लेकर हरदिल अज़ीज़ी की दौलत कमाई।

सलाहउद्दीन अय्यूबी पर उनके मुहाफ़िज़ों की मोजूदगी में उस पर हमला न किया जा सकता था। दो हमले नाकाम हो चुके थे, अब जबके सलाहुद्दीन अय्यूबी को ये तवक़्क़ो (उम्मीद) थी के उनका चचा ज़ाद भाई अल सालेह, अमीर सैफुद्दीन शिकस्त खाकर तौबा कर चुके होंगे उन्होने इन्तक़ाम की एक और ज़ैर ए ज़मीन कोशिश की।

सलाहुद्दीन अय्यूबी ने इस फ़तह का जश्न मनाने की बजाय हमले जारी रखे और तीन क़स्बों को क़ब्ज़े में ले लिया, इनमें ग़ज़ा का मशहूर क़स्बा भी था।उसी क़स्बे के गिर्द ओ निवाह (आस पास)में एक रोज़ सलाहुद्दीन अय्यूबी अमीर जावा अल असदी के खेमें में दोपहर के वक़्त ग़ुनूदगी के आलम में सुस्ता रहे थे। उन्होंने अपनी वो पगड़ी नहीं उतारी थी जो मैदान ए जंग में उनके सर को सहरा के सूरज और दुश्मन की तलवार से महफ़ूज़ रखती थी।

खेमें के बाहर उनके मुहाफ़िज़ों का दस्ता मौजूद और चौकस था। बाडी गार्ड्स के इस दस्ते का कमांडर ज़रा सी देर के लिए वहां से चला गया। एक मुहाफ़िज़ ने सलाहुद्दीन अय्यूबी के खेमें के गिरे हुए पर्दों में से झांका। इस्लाम की अज़मत के पासबान की आंखें बंद थीं, वो पीठ के बल लेटा हुआ था। उस मुहाफ़िज़ ने बाडी गार्ड्स की तरफ देखा, उनमें से तीन चार बाडी गार्ड्स ने उसकी तरफ देखा। मुहाफ़िज़ ने अपनी आंखें बंद करके खोलीं। तीन चार मुहाफ़िज़ उठे और दूसरों को बातों में लगा लिया। मुहाफ़िज़ खेमें में चला गया, कमर बंद से खंजर निकाला दबे पाँव चला और फिर चीते की तरह सोए हुए सलाहुद्दीन अय्यूबी पर जस्त (छलांग) लगाई। ख़ंजर वाला हाथ ऊपर उठा, ठीक उसी वक़्त सलाहुद्दीन अय्यूबी ने करवट बदली। ये नहीं बताया जा सकता कि मुहाफ़िज़ खंजर कहां मारना चाहता था, दिल में या सीने में मगर हुआ यूं के खंजर सलाहुद्दीन अय्यूबी की पगड़ी के बालाई हिस्से में उतर गया और सर से बाल बराबर दूर रहा। पगड़ी सर से उतर गई। सलाहुद्दीन अय्यूबी बिजली की तेज़ी से उठा। उसे ये समझने में देर न लगी के ये सब क्या है। उस पर इस से पहले ऐसे दो हमले हो चुके थे। उसने इस पर भी हैरत का इज़हार न किया के हमलावर उसके अपने बाडी गार्ड्स के लिबास में था जिसे उसने ख़ुद अपने बाडी गार्ड्स के लिये मुन्तख़ब किया (चुना) था। उसने साँस जितना अरसा (समय) भी ज़ाया न किया। हमलावर उसकी पगड़ी से खंजर खींच रहा था।

अय्यूबी सर से नंगा था, उसने हमलावर की थुड्डी पर पूरी ताक़त से घूंसा मारा, हड्डी टूटने की आवाज़ सुनाई दी। हमलावर का जबड़ा टूट गया था। वो पीछे को गिरा और उसके मुँह से हैबतनाक आवाज़ निकली। उसका खंजर सलाहुद्दीन अय्यूबी की पगड़ी में रह गया था। सलाहुद्दीन अय्यूबी ने अपना खंजर निकाल लिया। इतने में दो मुहाफ़िज़ दौड़ते अंदर आये। उनके हाथों में तलवारें थीं।

सलाहुद्दीन अय्यूबी ने उन्हें कहा के इसे ज़िन्दा पकड़ लो मगर ये दोनों मुहाफ़िज़ सलाहुद्दीन अय्यूबी पर टूट पड़े। सलाहुद्दीन अय्यूबी ने खंजर से दो तलवारों का मुक़ाबला किया मगर ये मुक़ाबला एक दो मिनट का था क्योंकि तमाम बाडी गार्ड्स अंदर आ गये थे। अय्यूबी ये देख कर हैरान रह गया के उसके बाडी गार्ड्स दो हिस्सो में तक़सीम होकर एक दूसरे को लहु लुहान कर रहे थे। इसे क्योकि मालूम नहीं था कि इनमें इसका दुश्मन कौन और दोस्त कौन है, वो इस मोरके (लड़ाई) में शरीक न हो सका। कुछ देर बाद जब बाडी गार्ड्स में से चंद एक मारे गये, कुछ भाग गये और बाज़ ज़ख़्मी होकर बेहाल हो गये तो इन्केशाफ़ हुआ (राज़ खुला), के इस दस्ते में जो सलाहुद्दीन अय्यूबी की हिफ़ाज़त पर मामूर था, सात मुहाफ़िज़ फ़िदाई थे जो सलाहुद्दीन अय्यूबी को खत्म करना चाहते थे।

उन्होंने इस काम के लिये सिर्फ एक फ़िदाई खैमें में भेजा था, अंदर सूरत ए हाल बदल गयी चुनाचे बाक़ी भी अंदर चले गये। छ: असल मुहाफ़िज़ भी अंदर गये। वो सूरत ए हाल समझ गये और सलाहुद्दीन अय्यूबी बच गया। उसने अपने पहले हमलावर की शह रग पर तलवार की नोंक रख कर पूछा के वो कौन है और उसे किसने भेजा है। सच बोलने के बदले सलाहुद्दीन अय्यूबी ने उसे जान बक़्शी का वादा दिया। उसने बता दिया कि वो फ़िदाई है और उसे कैमेश्तकिन जिसे बाज़ मोअर्रिख़ों (इतिहासकारों) ने गोमश्तगीन लिखा है ने इस काम के लिए भेजा था। कैमेश्तकिन अल सालेह के एक क़िले का गवर्नर था।