1924 तक दलित महिलाओं को स्तन ढकने के लिए टैक्स देना पड़ता था, छाती पर कपड़ा दिखा तो चाकू से फाड़ देते थे
मुस्लिम राजाओ सुल्तानों बादशाहो के इतिहास बदलने की बात हो रही है ,लेकिन क्या उनके किये गए कार्यो को भुलाया नहीं जा सकता उनमे से एक उदहारण टीपू सुल्तान का है इतिहासकारों ने टीपू सुल्तान को लेकर थोड़ा बड़ा दिल दिखाया पर अब टीपू सुल्तान को भी विवादित करने का प्रयास किया गया और औरंगजेब के जैसा बनाने का प्रयास किया गया , इतिहासकार टीपू सुल्तान के प्रति इसलिए झूठ ना लिख सके क्युँकि टीपू सुल्तान का सारा इतिहास बहुत करीब के दिनों का है और यह तथ्य और सबूत है कि वह अंग्रेज़ों से लड़ते हुए शहीद हुए और अपनी पूरी सल्तनत बर्बाद कर दी।

केरल के त्रावणकोर इलाके, खास तौर पर वहां की महिलाओं के लिए 26 जुलाई का दिन बहुत महत्वपूर्ण है। इसी दिन 1859 में वहां के महाराजा ने दलित औरतों को शरीर के ऊपरी भाग पर कपड़े पहनने की इजाजत दी। इस परंपरा की चर्चा में खास तौर पर निचली जाति नादर की स्त्रियों का जिक्र होता है क्योंकि अपने वस्त्र पहनने के हक के लिए उन्होंने ही सबसे पहले विरोध जताया और जिनको हक दिलाने के लिए टीपू सुल्तान ने उस राज्य पर आक्रमण किया।

जब स्तन ढकने के अधिकार के लिए काट दिए स्तन..
जातिवाद की जड़ें बहुत गहरी थीं और निचली जातियों की महिलाओं को उनके स्तन न ढकने का आदेश था. उल्लंघन करने पर उन्हें ‘ब्रेस्ट टैक्स’ यानी ‘स्तन कर’ देना पड़ता था BBC के अनुसार केरल के श्री शंकराचार्य संस्कृत विश्वविद्यालय में जेंडर इकॉलॉजी और दलित स्टडीज़ की एसोसिएट प्रोफ़ेसर डॉ. शीबा केएम बताती हैं कि ये वो समय था जब पहनावे के कायदे ऐसे थे कि एक व्यक्ति को देखते ही उसकी जाति की पहचान की जा सकती थी.

डॉ. शीबा कहती हैं, “ब्रेस्ट टैक्स का मक़सद जातिवाद के ढांचे को बनाए रखना था. ये एक तरह से एक औरत के निचली जाति से होने की कीमत थी. इस कर को बार-बार अदा कर पाना इन ग़रीब समुदायों के लिए मुमकिन नहीं था.”
केरल के हिंदुओं में जाति के ढांचे में नायर जाति को शूद्र माना जाता था जिनसे निचले स्तर पर एड़वा और फिर दलित समुदायों को रखा जाता था.

उस दौर में दलित समुदाय के लोग ज़्यादातर खेतिहर मज़दूर थे और ये कर देना उनके बस के बाहर था. ऐसे में एड़वा और नायर समुदाय की औरतें ही इस कर को देने की थोड़ी क्षमता रखती थीं.

डॉ. शीबा के मुताबिक इसके पीछे सोच थी कि अपने से ऊंची जाति के आदमी के सामने औरतों को अपने स्तन नहीं ढकने चाहिए.

वो बताती हैं, “ऊंची जाति की औरतों को भी मंदिर में अपने सीने का कपड़ा हटा देना होता था, पर निचली जाति की औरतों के सामने सभी मर्द ऊंची जाति के ही थे. तो उनके पास स्तन ना ढकने के अलावा कोई विकल्प नहीं था.”

इसी बीच एड़वा जाति की एक महिला, नंगेली ने इस कर को दिए बग़ैर अपने स्तन ढकने का फ़ैसला कर लिया.

पहले भी इतिहास से मिटाने की कोशिश हुए थी लेकिन मिटा न सके
NCRT ने 2019 में क्लास 9 के इतिहास की बुक से तीन अध्याय हटा दिए। इसमें एक अध्याय त्रावणकोर में निचली जातियों के संघर्ष से जुड़ा था। हंगामा हुआ। केरल के सीएम पिनाराई विजयन ने कहा, “यह विषय हटाना संघ परिवार के एजेंडे को दिखाता है।” इसके पहले CBSE ने भी 2017 में 9वीं के सोशल साइंस से ये वाला चैप्टर हटा दिया था। मामला मद्रास हाईकोर्ट पहुंच गया। कोर्ट ने कहा, “2017 की परीक्षाओं में चैप्टर, कास्ट, कन्फ्लिक्ट एंड ड्रेस चेंज से कुछ भी नहीं पूछा जाएगा।”