दोनों अज़ीम रहनुमाओं का यौम-ए-पैदाइश पूरे मुल्क में धूम-धाम के साथ मनाया जाए: एम.डब्ल्यू. अंसारी (आईपीएस)

भोपाल : भारत के दो अज़ीम रहनुमा - - बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर और मौलाना अली हुसैन आसिम बिहारी – जिन्होंने अपनी सारी ज़िंदगी ग़रीबों, मज़लूमों को इंसाफ़ दिलाने, जात-पात, ऊँच-नीच और आपसी भेदभाव को ख़त्म करने के लिए वक़्फ़ कर दी। ये दोनों रहनुमा तक़रीबन हम - 'असर हैं और उनकी हयात व ख़िदमात की बात करें तो

दोनों अज़ीम रहनुमाओं का यौम-ए-पैदाइश पूरे मुल्क में धूम-धाम के साथ मनाया जाए: एम.डब्ल्यू. अंसारी (आईपीएस)

दस्तूर ए हिंद के मौलिफ, भारत के पहले वज़ीरे-क़ानून और भारत रत्न बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर और बाबा क़ौम और अज़ीम मुजाहिद-ए-आज़ादी मौलाना अली हुसैन आसिम बिहारी साहब को ख़िराज-ए-अकीदत

भोपाल : भारत के दो अज़ीम रहनुमा - - बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर और मौलाना अली हुसैन आसिम बिहारी – जिन्होंने अपनी सारी ज़िंदगी ग़रीबों, मज़लूमों को इंसाफ़ दिलाने, जात-पात, ऊँच-नीच और आपसी भेदभाव को ख़त्म करने के लिए वक़्फ़ कर दी। ये दोनों रहनुमा तक़रीबन हम - 'असर हैं और उनकी हयात व ख़िदमात की बात करें तो दोनों रहनुमाओं में बड़ी हद तक यकसांयित पाई जाती है।

दोनों की ज़िंदगी पैदाइश से लेकर वफ़ात तक यकसां रही। ये अलग बात है कि आज बाबा साहब के पैरवीकार बेशुमार हैं और उनके बताए हुए रास्ते पर चल रहे हैं, जबकि बाबाए क़ौम अली हुसैन आसिम बिहारी साहब के पैरवीकार तो हैं लेकिन उनके बताए हुए रास्ते से भटक गए हैं, जो आज उनका नाम तक नहीं लेते।

जबकि आज ढेर सारी तंज़ीमें जैसे - मोमिन कॉन्फ्रेंस, अंसार सभा, अंसारी पंचायत वगैरह - हज़ारों की तादाद में हैं, जो सिर्फ़ अपनी सियासी रोटियाँ सेंकने में लगी हैं। आज तक किसी ने बाबाए क़ौम अली हुसैन आसिम बिहारी साहब की यौम-ए- पैदाइश या यौम-ए-वफ़ात पर न तो याद किया और न ही कोई प्रोग्राम मुन'अक़िद किया और एक ऐसी शख्सियत को दिन-ब- दिन गुमनामी की जिंदगी में ढकेलने में लगे हैं। और ऐसी क़ौम को तारीख़ कभी माफ़ नहीं करेगी।

बाबाए क़ौम अली हुसैन आसिम बिहारी साहब की क़ब्र / मक़बरा की भी कोई ख़बर लेने वाला नहीं है, जो गुमनामी की हालत में इलाहाबाद में मौजूद है। दो-चार फूल चढ़ाने की तो दूर की बात है, उन्हें याद तक नहीं करते। और इसी तरह तमाम पसमांदा रहनुमाओं का हाल है जिनका कोई पुरसाने हाल नहीं है।

डॉक्टर भीमराव अंबेडकर एक मुमताज़ मुफक्किर, मुसलिह, क़ानून दाँ, दस्तूर हिंद के मौलिफ़ और भारत के पहले वज़ीरे-क़ानून और इल्म के हामिल थे। बाबा साहब अंबेडकर ऐसे दौर में पैदा हुए जब ज़ुल्म-ओ-ज्यादती और इस्तिहसाल का दौर रहा था और भारत का माशरा जात-पात की तफ़रीक और छुआछूत पर मबनी था। डॉक्टर अंबेडकर का ताल्लुक़ उसी अछूत बिरादरी से था जो इंसानी हुक़ूक़ से महरूम थी। उन्हें बचपन में इस छुआछूत का शिकार होना पड़ा। डॉक्टर अंबेडकर जब स्कूल में दाखिला लिए तो दीगर जात के बच्चों के साथ उन्हें बैठने की इजाज़त न थी । वह सबसे अलग ज़मीन पर टाट बिछाकर बैठते थे, लेकिन कभी मायूस नहीं हुए और न हिम्मत हारी ।

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वहीं मुजाहिद-ए-आज़ादी मौलाना आसिम बिहारी का ताल्लुक़ एक मुसलमान ख़ानदान से था जो काफ़ी ग़रीब थे। वह एक मुसलिह-ओ-मुफक्किर क़ौम, दानिशवर, समाजी-ओ-सियासी और इंसान - दोस्त शख्सियत थे। उन्होंने अवाम के लिए जो ख़िदमात अंजाम दीं, उसकी मुस्लिम माशरे में कोई मिसाल नहीं मिलती। उनकी कोशिशों की बदौलत अवाम में बेदारी पैदा हुई और समाजी-ओ-सियासी शुऊर बेदार हुआ।

मौलाना आसिम बिहारी ऐसे दौर में पैदा हुए जब ग़रीब, मेहनतकश तबक़ात समाजी, तालीमी और मआशी बदहाली का शिकार थे। ग़ैरों की तर्ज़ पर मुस्लिम माशरे में भी जात-पात और ऊँच-नीच का दौर दौरा था। मुसलमानों के दरमियान नाइंसाफ़ी व इस्तिहसाल की बुरी रवायत आम थी, जिसका सिलसिला अब भी जारी है।

डॉक्टर अंबेडकर और मौलाना आसिम बिहारी दोनों रहनुमाओं ने तालीम हासिल करने पर ज़ोर दिया, क्योंकि वह जानते थे कि समाज के अंदर फैली जात-पात, छुआछूत और नाइंसाफ़ी व इस्तिहसाल की इस गंदी रवायत को अगर ख़त्म करना है तो आला तालीम हासिल करना होगा। समाज में फैली तमाम तरह की बुराइयों को अगर ख़त्म करना है तो हमें तालीमयाफ़्ता बनना होगा। इन रहनुमाओं ने अपनी पूरी ज़िंदगी ग़रीबों, मेहनतकशों, तालीमी, मआशी, समाजी तौर पर नज़रअंदाज़ और कमज़ोर दलित बिरादरियों की हमह जहत फ़लाह-ओ-बहबूद की कोशिशों में गुज़ार दी।

आज मौजूदा हालात में देखा जा रहा है कि हर शोबे में, हर जगह - चाहे अदलिया हो, इंतेज़ामिया हो, पार्लियामेंट हो - कहीं भी मनुवादी और पूँजीवादी अनासिर, जिनकी आबादी महज़ 5 फ़ीसद से ज़्यादा नहीं है, लेकिन उन्होंने 45 से 95 फ़ीसद पर क़ब्ज़ा कर रखा है। ऐसे में ज़ाती जनगणना (मर्दमारी) होनी चाहिए और सभी की हिस्सेदारी आबादी के तनासुब से होनी चाहिए। आज हमें समविधान (आई) को बचाना है, साथ ही साथ मनुवाद और पूँजीवाद को ख़त्म करना है, भगाना है, ईवीएम से इंतेख़ाबात न हों इसकी मेहनत करना है। उन्होंने नारा भी दिया था कि

दलित-दलित एक समान,                                              चाहे हिंदू हो या मुसलमान

दोनों रहनुमाओं ने हमेशा लोगों से तालीमयाफ़्ता बनने, मुत्तहिद होने, मेहनत करने, अपने हुक़ूक़ के लिए आवाज़ उठाने, समाज में फैली बुराइयों से लड़ने और उसको ख़त्म करने, नाइंसाफ़ी व इस्तिहसाल के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद करने, भेदभाव, जात- पात की रवायत के ख़िलाफ़ लड़ने, हक़-तल्फ़ी करने वालों और हक़ - तल्फ़ी करने वाली पॉलिसियों के ख़िलाफ़ लड़ने की बात कही।

आज भारत को फिर से उसी जात-पात और भेदभाव की आग में झोंकने की कोशिशें की जा रही हैं। समाज के लोगों को आपस में बाँटा और लड़ाया जा रहा है। लोगों में नफ़रतें फैलाई जा रही हैं। संविधान का मज़ाक उड़ाया जा रहा है। लोगों के हुक़ूक़ को पामाल किया जा रहा है। ज़ुल्म-ओ-ज्यादती के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद करने वालों को ख़ामोश करने के लिए मुख़्तलिफ़ हथकंडे अपनाए जा रहे हैं। मुल्क में दंगे भड़काए जा रहे हैं। लोगों का क़त्ल-ए-आम किया जा रहा है, औरतों की इज़्ज़तें लूटी जा रही हैं। और ये सब उनकी नज़रों के सामने हो रहा है जिन पर इसे रोकने की ज़िम्मेदारी है।

वाज़ेह रहे कि दंगा हो या ज़ुल्म-ओ-ज्यादती, इसके करने वाले भी ग़रीब लोग होते हैं जिनका इस्तेमाल मनुवादी और पूँजीवादी अनासिर / ताक़तों के ज़रिये उन्हें के ग़रीब भाइयों, मज़लूमों, दलितों के ख़िलाफ़ किया जाता है और इसके शिकार भी अक्सर ग़रीब तबक़े के लोग ही होते हैं – चाहे उनका ताल्लुक़ किसी भी धर्म और मज़हब से क्यों न हो।

ज़ेहन में ये बात रहे कि :
दलित दलित एक समान 
हिंदू हो या मुसलमान

सोशल मीडिया, वॉट्सऐप, फ़ेसबुक के ज़रिये निकल कर आ रहे वीडियोज़ और फ़ोटोज़ में देखा जा रहा है कि जहाँ कहीं भी दंगा होता है या सरकार कार्रवाई करती है, उसके शिकार ग़रीब, एससी, एसटी, ओबीसी ही हो रहे हैं। एक तरफ़ सरकार ग़रीबी के ख़िलाफ़ तरह-तरह की योजनाएं बना रही है, ग़रीबों को मुफ़्त राशन दे रही है, वहीं दूसरी तरफ़ ग़रीबों के आशियाने बनाने की बजाय उजाड़ने पर लगी है और एकतरफा कार्रवाई भी कर रही है जो संविधान के ख़िलाफ़ है।

हिंदू-मुसलमान लड़ेंगे तो सिर्फ़ मनुवादी और पूँजीवादियों को फ़ायदा होगा और अगर हिंदू-मुसलमान मिल-जुल कर रहेंगे तो भारत को फ़ायदा होगा और भारत की साझी विरासत को मज़बूती मिलेगी।

इसी लिए हमें इसके ख़िलाफ़ लड़ना है और हम सब को मिलकर हर लिहाज़ से आगे तरक़्क़ी करना है । और भारत के संविधान को बचाना है। जाति के आधार पर जनगणना की माँग करनी है। जिसकी जितनी आबादी, उसकी उतनी भागीदारी की बात करनी है। जो मनुवादी और पूँजीवादी ताक़तें हम लोगों को लेने से रोक रही हैं। अंग्रेज़ों की तरह हमें आपस में लड़ाकर राज करना चाहती हैं। हमें इसको ख़त्म करके समाज में भाईचारा, अमन-ओ- अमान क़ायम करना है और साझी विरासत को बचाना है । मनुवादी और पूँजीवादी अनासिर का दायरा पूरे मुल्क में फैल चुका है, जो अवाम को अपने हुक्कूक़ के लिए आवाज़ बुलंद करने वालों को मज़हबी मसाइल में उलझाकर उनको गुमराह कर रहे हैं। हमें इसके ख़िलाफ़ मुत्तहिद होना है और देश को बिकने और बिखरने से बचाना है।